आइए हम विष्णुपद मंदिर के बारे में जानते हैं।
गया के हृदय स्थल विष्णुपद, भारत के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है और यह भगवान विष्णु को समर्पित है जो माता सीता के द्वारा श्रापित फल्गु नदी के किनारे स्थित है। यहां भगवान विष्णु के पैरों के निशान मौजूद हैं जिन्हें धर्मशिला के नाम से जाना जाता है। यह 40 सेंटीमीटर लंबा पदचिन्ह है और चारों ओर चांदी से जड़ा बेसिन है। यह निशान बेसाल्ट के एक टुकड़े पर बना हुआ है। हिंदू धर्म के अनुसार ये पद चिन्ह उस समय का है जब भगवान विष्णु ने गयासुर की छाती पर पैर रखकर उसे धरती के भीतर धकेल दिया था। इस मंदिर का निर्माण कब हुआ इसकी जानकारी किसी को नहीं मिल पायी है परंतु इसकी वर्तमान संरचना इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने सन.1787ई० में करवाई थी।
वास्तुकला के आईने में मंदिर को देखें तो मंदिर का निर्माण भगवान विष्णु के पद चिन्हों के चारों ओर बनाया गया है और यह पदचिन्ह मंदिर के केंद्र में स्थित है। मंदिर की ऊंचाई 30 मीटर है जिसके अंदर खूबसूरत नक्काशी वाले खंभों की 8 पंक्तियां हैं जिन्हेंने मंडप को सहारा प्रदान किया हुआ है।
मंदिर का निर्माण बड़े-बड़े ग्रेनाइट पत्थर द्वारा किया गया है जिसमें लोहे के कंपास लगे हैं। इसका मुख्य द्वार पूर्व की ओर है और इसमें मौजूदा पिरामिड आकार का टावर है जिसकी ऊंचाई 100 फीट है। यहां सोने से बना झंडा और कलश है जो मंदिर के शीर्ष पर स्थित है।
ऐसी मान्यता है कि यहां भगवान गौतम बुद्ध ने 6 वर्षों तक घोर योग साधना की थी, भगवान राम के चरण पड़े थे, रामानुजाचार्य, माहवाचार्य , शंकरदेव और चैतन्य महाप्रभु जैसे दिग्गज संत यहां आ चुके हैं।
गया का विष्णुपद मंदिर श्राद्ध कर्म के लिए पूरे भारत में व अन्य देशों में भी विख्यात है और देश विदेश के कोने-कोने से लोग यहां आते हैं, और इस श्राद्धकर्म को यहां के पारंपरिक पुजारी जिन्हें गयावार पंडा कहा जाता है के हाथों संपन्न कराया जाता है। यह पांडा अथवा तीर्थ पुरोहित अलग-अलग राज्यों कें अलग-अलग जिले के लोगों को अपनी सेवाएं देते हैं, और पीढ़ी दर पीढ़ी इस परंपरा का निर्वहन होता आ रहा है। लोग अपने गयावार तीर्थ पुरोहित जी के बही खाते में अपने पूर्वजों के नाम आदि को लिखवातें हैं और अपने श्राद्ध कर्म को विधि विधान से संपन्न कराते हैं।